गौतम बुद्ध की जीवन कथा : प्रकरण 25-29 तक,सूरज पाण्डेय /सिद्धार्थ पाण्डेय की कलम से

गौतम बुद्ध की जीवन कथा : प्रकरण 25-29 तक,सूरज पाण्डेय /सिद्धार्थ पाण्डेय की कलम से

प्रकरण-25

बुद्ध ने मनुष्य के चरित्र की पवित्रता को संसार की भलाई की आधार-शिला बताया

बुद्ध ने अष्टांगिक -मार्ग में से क्रमशः प्रत्येक मार्ग की व्याख्या पाँचों ब्राहमणों को समझाई। साथ ही शीलवान होने के लिए अग्रांतिक सदगुणों का अभ्यास आवश्यक बताया:  1.शील 2. दान 3. उपेक्षा 4. नैष्क्रम्य 5. वीर्य 6. शांति 7. सत्य 8. अधिष्ठान 9. करूणा और 10. मैत्री ।

बुद्ध ने मनुष्य के चरित्र की पवित्रता को संसार की भलाई की आधार-शिला बताया। जब पांचो ब्राहमण संतुष्ट हुए तो उन्होंने बुद्ध का शिष्यत्व ग्रहण कर लिया।

प्रकरण-26

बुद्ध ने यश को बिलासिता से विरक्ति दिलाई,वाराणसी में उसके चार मित्र भी बुद्ध के शिष्य हो गए

वाराणसी में यश नाम का एक गृहपति पुत्र अत्यंत विलासिता का जीवन जी रहा था। एक दिन उसे इस जीवन से विरक्ति हो गई। वह रात भर निरूद्देश्य इधर-उधर भटकता रहा। सुबह उसकी भेंट तथागत से हुई ।तथागत ने उसे उपदेश दिया।

यश उनका शिष्य हो गया। गृहपति यश को खोजता हुआ ऋषिपतन पहुंचा।उसने पुत्र को लौट चलने का आग्रह किया।किन्तु वह नहीं गया ।गृहपति ने तथागत को शिष्यों सहित भोजन का आमंत्रण दिया। यश के चार मित्र भी बुद्ध के शिष्य हो गए।

प्रकरण-27

वाराणसी में तीन काश्यप-बंधु के एक हज़ार अनुयायी बुद्ध के शिष्य बन गए

वाराणसी में तीन काश्यप-बंधु थे। तीनों ने संन्यास ले लिया। वे उरूवेल में फल्गु नदी के किनारे रहते थे। उनमें से एक उरूवेल काश्यप, दूसरा नदी काश्यप तथा तीसरा गया-काश्यप कहलाता था। उनके क्रमशः पाँच सौ, तीन सौ तथा दो सौ अनुयायी थे।

तथागत उरूवेल-काश्यप के आश्रम पहुँचे। उसे मुचलिंद-नागराज बहुत सताता था। तथागत को वहाँ देख नागराज उनके चरणों पर गिर पड़ा। बुद्ध ने उरूवेल-काश्यप, को उचित अवसर पाकर अपना उपदेश दिया। फलस्वरूप वह बुद्ध का अनुयायी हो गया। उसके शेष दोनों भाई भी बुद्ध के शिष्य बन गए।

प्रकरण-28

राजगृह में सज्जय परिव्राजक ढाई सौ अनुयायी, भगवान बुद्ध के भक्त बन गए

राजगृह में सज्जय परिव्राजक ढाई सौ अनुयायियों के साथ रहता था। उनमें सारिपुत्र और मौद्गगल्यायन नामक दो तरुण भी थे। एक दिन सारिपुत्र की भेंट पंच वर्गीय भिक्षुओं में से एक भिक्षु अश्वजित से हुई।

सारिपुत्र ने उसे गुरु का नाम पूछा। अश्वजित ने भगवान बुद्ध का नाम तथा उनके उपदेश संक्षेप में बताए। सारिपुत्र मौद्गगल्यायन के पास पहुँचा और उसे सारी वार्ता बताई। दोनों सज्जय को छोड़कर तथागत के पास वेणुवन पहुँचे। उनके साथ उनके ढाई सौ मित्र भी थे। सब बुद्ध के अनुयायी बन गए।

प्रकरण-29

राजगृह में मगध नरेश बिम्बिसार, भगवान बुद्ध का उपासक बन, भगवान बुद्ध को भोजन पर आमंत्रित किया साथ राजगीर का वेणुवन, भिक्षु-संघ को दान में दे दिया

राजगृह में तथागत की ख्याति फैल चुकी थी। अनेक गृहपति तथा ब्राह्मण भी उनके अनुयायी बन गए। मगध नरेश बिम्बिसार भी उनसे प्रभावित हुए बिना न रह सके। बिम्बिसार की पाँच इच्छाएँ थी

1. वह राजा बने

2. बुद्ध उसके राज्य में पधारे

3. वह बुद्ध की सेवा करे

4. बुद्ध उसे धर्मोपदेश दे, और

5. बुद्ध का धर्म हृदयंगम करें।

उसकी पाँचों इच्छाएँ पूर्ण हुईं। मगध नरेश बिम्बिसार भगवान बुद्ध का उपासक बन गया। उसने बुद्ध को भिक्षु-संघ सहित भोजन पर आमंत्रित किया। उसने अपना वेणुवन भिक्षु-संघ को दान में दे दिया।

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