गौतम बुद्ध की जीवन कथा : प्रकरण 21-24 तक,सूरज पाण्डेय /सिद्धार्थ पाण्डेय की कलम से

गौतम बुद्ध की जीवन कथा : प्रकरण 21-24 तक,सूरज पाण्डेय /सिद्धार्थ पाण्डेय की कलम से

प्रकरण-21

सिद्धार्थ उरूबेला से गया जा पहुँचे, कामदेव ने उन्हें ललचाने का हर संभव प्रयास किया, किन्तु सिद्धार्थ अड़िग बना रहे

सिद्धार्थ तपस्या मार्ग से असंतुष्ट था, किन्तु उसने आशा नहीं छोड़ी। वह उरूबेला से गया जा पहुँचा। वहाँ एक पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान लगाकर बैठ गया। काल नामक नागराज और स्वर्णप्रभा नामक नागराज की पत्नी ने उसकी स्तुति की। ध्यान करते समय कामदेव ने उसे ललचाने का हर संभव प्रयास किया किन्तु सिद्धार्थ अड़िग बना रहा। अंत में कामदेव को अपनी हार माननी पड़ी।

प्रकरण-22

सिद्धार्थ चार सप्ताह तक लगातार ध्यानावस्था रहे और दुःख का कारण ढूँढ़ निकाले, गौतम ‘बुद्ध’’ हो गए,

सिद्धार्थ चार सप्ताह तक लगातार ध्यानावस्था में रहा। उसका चित्त एकाग्र होकर पवित्र हो गया। चौथे सप्ताह के अंतिम दिन उसे दो समस्याएँ जान पड़ी.

1. संसार में दुःख है और

2. इसका अंत कैसे किया जाय।

उसने दुःख का कारण ढूँढ़ निकाला। जब कारण मिल गया तो उसका नाश करने का मार्ग भी मिला। यही सम्यक संबोधि कहलाता है। गौतम ‘‘बुद्ध’’ हो गए।

प्रकरण-23

बुद्धत्व प्राप्त करने के पश्चात,बुद्ध ने अपने धर्म का उपदेश देने का निर्णय लिया

बुद्धत्व प्राप्त करने के पश्चात बुद्ध के मन में द्वंद्ध चलने लगा। वह सोचने लगा कि इस नये धर्म का उपदेश लोगों को दे अथवा नहीं। पहले तो यही विचार आया कि इसे लोग समझ नहीं पाएँगे, किन्तु ब्रहमा के आग्रह पर उसे उपदेश देन हेतु सहमत होना पड़ा।

उसके मस्तिष्क में बलि-प्रथा, आपसी विवाद, ऊँच-नीच, पाखंड, निर्धनों पर अत्याचार जैसे अनेक दृश्य घूमने लगे। जरा-मरण का भय लोगों में किस तरह व्याप्त है फिर भी वे माया में लिप्त हैं। अतः जन-कल्याणार्थ उन्होंने अपने धर्म का उपदेश देने का निर्णय लिया। सर्वप्रथम उपदेशामृत हेतु वे सारनाथ पहुँचे, जहाँ उनके पाँच ब्राहमण साथी थे।

प्रकरण-24

बुद्ध ने इच्छाओं को वश में करने, शारीरिक आवश्यकताओं के हिसाब से खान-पान करने के साथ -साथ पाँचशील (‘‘पंच-शील’’) और अष्टांगिक -मार्ग बताए

बुद्ध ने उन पाँच ब्राहमणों को मध्यम मार्ग का उपदेश दिया। वे काय-क्लेश तथा काम-भोग के मध्य का मार्ग मानव-कल्याणार्थ उचित मानते थे। उन्होंने कहा पहले इच्छाओं को वश में करे तथा शारीरिक आवश्कताओ के हिसाब से खान-पान करें। शरीर को स्वस्थ रखना हमारा कर्तव्य है।

अतः मनुष्य को काम-भोग एवं काय-क्लेश दोनों से बचना चाहिए। बुद्ध ने कहा कि मैं आत्मा, परमात्मा के चक्कर में नहीं पड़ता। दुःख के अस्तित्व की स्वीकृति और उसके नाश का उपाय ही उनके धर्म की आधार शिला है। इस दुःख का नाश करने के लिए

1. पवित्रता के पथ पर चलना।

2. धर्म के पथ पर चलना।

3. शील-मार्ग पर चलना आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि,

1. किसी प्राणी की हत्या न करना।
2. चोरी न करना।
3. व्यभिचार न करना।
4. असत्य न बोलना।
5. नशीली वस्तुएँ ग्रहण न करना।

ये पाँचशील बताए जिसें ‘‘पंच-शील’’ कहते हैं।

फिर उन्होंने अष्टांगिक -मार्ग बताए। ये है :

1. सम्यक् दृष्टि
2. 2. सम्यक् संकल्प
3. सम्यक् वाचा
4. सम्यक् कर्मान्त
5. सम्यक् आजीव
6. सम्यक् व्यायाम
7. सम्यक् स्मृति तथा
8. सम्यक् समाधि।

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