@ कोबरा,चित्रकूट उत्तरप्रदेश
“पानी की कीमत” डॉ. सतीश “बब्बा” की कलम से
रौनक और राहुल को बरारी और बेर खाने का मन हुआ। समय ने हमें कहां से कहां पहुंचा दिया है। पहले खेत की मेंड़ में झड़बेरी और गुजर बैरिया मिल जाया करती थीं; मीठी और स्वादिष्ट भी!
एक दो बार अपने दोस्त दादा जी से अपने पास के जंगल के बारे में सुना था। बीहड़ के पानी की महत्ता का भी जिक्र किया था दादा जी ने!
आखिर रौनक ने राहुल के साथ जब जंगल में प्रवेश किया, तो जो कहानियों में और दादा जी की जुबानी बताया गया था वह जंगल था ही नहीं!
उनका स्वागत हंसते हुए तुलसा ( एक गंधाता चारा ) की झाड़ ने किया। लेकिन रौनक और राहुल को रोना आ रहा था।
वहां कहीं कोई एकाध बरारी के झाड़ थे और किसी चिड़िया या किसी जानवर की आहट तक नहीं मिली। थोड़ी बहुत झड़बेरी के झाड़ भी मिले और करौंदा तक में कम ही फल लगे मिले थे।
उस जंगल को उजड़े जंगल के रूप में कह सकते हैं क्योंकि, दूर – दूर तक पेड़ों का नामोनिशान तक नहीं था।
अब वह खूब चल लिए थे। रौनक को प्यास लगी।
राहुल को भी प्यास लगने लगी थी। तब रौनक ने राहुल से कहा, “बीहड़ चलते हैं, वहां पानी होगा!”
बीहड़ अब नाम का बीहड़ था। वही पत्थर की कंदराएं; पेड़ों से शून्य!”
बीहड़ कुंड था लेकिन, सूखा हुआ। अब तो रौनक का मुंह देखने लायक था।
रौनक रो पड़ा और उसके साथ राहुल भी रोने लगा था। राहुल ने कहा, “रौनक अब क्या होगा? हम तो प्यास के मारे चल भी नहीं पाते हैं। यहां नेटवर्क भी नहीं काम कर रहा है!”
तभी किसी के जोर से हंसने की आवाज आई; वहां कोई नहीं था। यह कौन हो सकता है? राहुल को डर लगने लगा था क्योंकि उसने जंगलों में राक्षसों के होने के किस्से सुन रखे थे।
रौनक भी सोच रहा था कि, कौन हो सकता है? तभी फिर किसी ने कहा, “डरो नहीं बच्चों!”
रौनक ने राहुल से ठूंठ वृक्ष की ओर इशारा किया, जिसकी डालियों को काट डाला गया था। अब टेढ़ा – मेंढ़ा तना बस खड़ा था।
रौनक ने राहुल से कहा, “शायद पेड़ अंकल कुछ कहना चाहते हैं!”
रौनक और राहुल ने उस पेड़ के आगे हाथ जोड़ दिए थे क्योंकि, रौनक के दादा कहा करते हैं कि, “पेड़ देवता होते हैं और बहुत दयालु होते हैं!”
रौनक अपने दादा की बातों पर बहुत बिस्वास करता था। उसने राहुल से कहा, “यह जरूर वृक्ष देवता की आवाज है!”
राहुल और रौनक ने हाथ जोड़कर पेड़ से कहा, “पेड़ देवता जी, हमें बहुत प्यास लगी है। पानी पिलाइए न वरना, हमारी जान निकल जायेगी!”
पेड़ ने कहा, “यह मेरी हालत देखते हैं न, मैं टेढ़ा हूं इसलिए बचा हूं! मेरे हाथ – पांव थीं, मेरी डालियां! जो सभी काट डालीं गई हैं!”
राहुल पेड़ से चिपक गया। रौनक हाथ जोड़कर वहीं खड़ा रहा।
पेड़ ने कहा, “तुम मनुष्यों ने ही पेड़ काटे हैं। पेड़ लगाने के नाम पर, हाथ में लेकर फोटो खिंचवाते हैं, बस! लाखों रुपए डकार जाते हैं फिर भी, हमें कोई नहीं सींचता और न सींचें तो कोई बात नहीं है; मवेशियों से तो नहीं चराएं; कुल्हाड़ी तो न चलाएं!”
पेड़ रो पड़ा और कहने लगा, “तुम लोगों पर हमें दया आती है लेकिन तुम मनुष्यों को हम पर बिल्कुल भी दया नहीं आती है। तुम बोतल का पानी पीते हो यह तुम्हारा भ्रम है। जबकि हकीकत यह है कि, बोतल का पानी तुम लोगों को पी रहा है। और प्रदूषित हवा, पानी तुम लोगों को बीमार कर रहे हैं!”
पेड़ रो रहा था और कह रहा था कि, “अनियमित वर्षा, पेड़ नहीं होने से और पेड़ कट जाने से हो रही है। कितनी वनस्पतियां नष्ट हो चुकी हैं और सुंदर पक्षी कुछ बिल्कुल से खत्म हो गये हैं; कुछ बहुत कम बचे हैं और विषधरों में विष बढ़ गया है। तुम मनुष्यों को मरना कुबूल है लेकिन,
पर्यावरण को बचाना, पेड़ लगाना कुबूल नहीं है!”
पेड़ की बातें सुनकर रौनक फफक फफक कर रो पड़ा था।
पेड़ को दया आ गई और पेड़ ने कहा, “बच्चों, तुम मेरी जड़ में एक करौंदा के कांटे से सुराख कर दो और बीहड़ के कुंड में उतर जाओ! थोड़ी देर में मैं उस कुंड में तुम्हारे पीने के लिए साफ पानी भर दूंगा!”
रौनक ने ऐसा ही किया और राहुल के साथ रौनक ने पानी पिया। राहुल और रौनक उस समय पानी की कीमत को जाना था।
पेड़ ने प्रेम से उन दोनों से कहा, “तुम लोग अभी मत जाओ, मेरी छाया में जो मेरे बचे हुए ठूंठ से है उसमें थोड़ा सा आराम करने के बाद चले जाना!”
रौनक और राहुल ने वही किया, ठूंठ की छाया में आराम से बैठ गये। फिर लेटकर सो गए थे। बहुत आराम मिला था उनको!
वह नहीं जागे तब पेड़ ने आवाज लगाई और रौनक और राहुल ने जागकर पेड़ के चरणों में माथा रख दिया था।
रौनक और राहुल घर लौट आए थे। रौनक और राहुल को पेड़ का महत्व समझ में आ गया था और पानी की कीमत भी! पानी भी जिंदगी है यह भी उन लोगों ने जाना!
गर्मी की छुट्टियों में रौनक और राहुल ने पीपल के बीजों को इकट्ठा किया और आषाढ़ की पहली बारिश में ही पूरे जंगल में फैला आए थे।
रौनक और राहुल रात भर में पूरे गांव की सभी दीवालों में लिख दिया कि, पेड़ लगाओ, जीवन बचाओ; दो फरिश्ते!
सुबह उठकर गांव के लोगों ने देखा कि, यह तो चमत्कार ही है। क्योंकि सभी के दीवारों पर यही लिखा था।
रौनक ने अपने हमजोली वालों को बुलाया और पांच पांच पेड़ खाली जमीन में लगाया और उन पेड़ों को कांटे की झाड़ से रूंध दिया।
उनकी प्रेरणा से गांव वालों ने भी पेड़ लगाए और कुछ सालों में जंगल हरा भरा हो गया।
अब उस गांव में बादल समय से आने लगे, वर्षा होने लगी; गर्मी से राहत मिलने लगी और रोगों से भी गांव में काफी सुधार हुआ है।
रचना – कहानी ( “पानी की कीमत” )
डॉ. सतीश “बब्बा”