@ प्रजा दत्त डबराल नई दिल्ली
30 जुलाई को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर पहला शिव कुमार स्मृति पुरस्कार कहानी के लिए सुधांशु गुप्त को और उपन्यास के लिए गीता श्री को दिया गया। गीताश्री को उनके उपन्यास क़ैद बाहर के लिए और सुधांशु को कहानी संग्रह तेरहवाँ महीना के लिए यह पुरस्कार दिया गया।
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर लोधी रोड नई दिल्ली के कमला देवी ब्लॉक में आयोजित समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार अशोक वाजपेयी, ममता कालिया चित्रा मुद्गल और महेश दर्पण ने सुधांशु और गीताश्री को सम्मानित किया। ललिता अस्थाना भी वक्ता के रूप में शामिल हुईं।
मौज़ूदा रचनाकारों और पत्रकारों की भारी संख्या के बीच एकबारगी लगा कि कथाकार शिव कुमार शिव स्वयं यहां उपस्थित हो गये हैं। अपनी कहानियों-उपन्यासों के माध्यम से। शिव कुमार शिव की कहानियाँ प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में छपीं।
पहला कहानी संग्रह ‘देह दाह’ सन् 1989 में प्रकाशित हुआ. इसके बाद ‘जूते’,‘दहलीज’, ‘मुक्ति’ और ‘शताब्दी का सच’ कहानी संग्रह प्रकाशित हुए. कहानियों के अलावा उन्होंने‘आंचल की छांव में’ और वनतुलसी की गंध नाम से एक उपन्यास भी लिखा. 2005 में ‘तुम्हारे हिस्से का चांद’ उपन्यास प्रकाशित हुआ और चर्चित रहा।
किस्सा पत्रिका की संपादक अनामिका शिव की पहल पर ही यह सम्मान शुरू किया गया है। दोनों रचनाकारों को सम्मानित करते हुए तीनों वरिष्ठ रचनाकारों ने पुरस्कृत लेखकों की रचनाधर्मिता पर बात की। पुरस्कृत कथाकारों को 50-50 हजार रुपये की राशि, स्मृति चिह्न और सम्मान पत्र प्रदान किया गया।
पुरस्कृत कथाकार सुधांशु गुप्त का कहानी संग्रह ’तेरहवां महीना’
लेखक सुधांशु गुप्त द्वारा लिखा कहानी संग्रह ’तेरहवां महीना’ बीस अलग अलग कहानियों के जरिये ऐसा समां बांधता है कि एक बार जब पाठक इसे शुरू करता है तो वो यही चाहेगा कि इसे पूरा खत्म करके ही उठे।
इस कहानी संग्रह में ऐसी तमाम चीजें हैं जिनसे पाठक अपने को आसानी से जोड़ लेता है। कहानी संग्रह के विषय में कहा यही जा सकता है कि ये वैभव का शो ब्रिज नहीं, अभावों के बीच जीने को विवश चरित्रों की त्रासदियां हैं।
कहानी संग्रह न केवल अपने आप में अनूठा है बल्कि चिंतन योग्य भी है। कहानी का कथानायक या मुख्य चरित्र यहां अपना कोई भी पक्ष छुपाने की जगह उसे उधेड़ने में यकीन रखता है और यही बात इस कहानी संग्रह को अन्य कहानी संग्रहों से अलग करती है।
पुरस्कृत कथाकार गीताश्री का उपन्यास ’कैद बाहर’
गीताश्री का उपन्यास कैद बाहर बताता है कि कैसे आज भी प्राचीन परम्पराओं और रूढ़ियों के पिंजरे में बंद हैं भारतीय महिलाएं उससे आजाद होना चाहती है ।
किताब में लेखिका गीताश्री ने स्त्रियों को परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़ते दिखाया है, अपने शब्दों से उनके संघर्षों को आवाज दी है। किताब बताती है कि क़ैद से बाहर निकलकर एक महिला के लिए स्वच्छंद जीवन यापन का मार्ग किसी भी सूरत में आसान नहीं है। तमाम अवरोध हैं, तमाम तरह के संघर्ष हैं जिनका सामना एक स्त्री को करना पड़ता है।
जैसे जैसे किताब आगे बढ़ती है बतौर पाठक यही महसूस किया जा सकता है कि अपना फैसला खुद स्त्री को लेना है। स्त्री को खुद बताना होगा कि उसे पिंजड़े में बंद रहना है या खुले आकाश में विचरण करते हुए अपने को विस्तार देना है।
अनामिका शिव ने बताया कि हर वर्ष एक उपन्यास और एक कहानी संग्रह के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस पुरस्कार का मकसद शिव कुमार शिव के साहित्य पर विमर्श को दिशा देना होगा।
कार्यक्रम का मंच संचालन वरिष्ठ लेखिका अणुशक्ति सिंह ने किया ।