फैमिली के स्पोट के बिना,सफल होना संभव नहीं : प्रियनंदनी बाली 

@ प्रजा दत्त डबराल नई दिल्ली

कहा जाता है इस संसार में कोई भी जन्म से न ही प्रतिभावान ,गुणवान और न ही बुद्धिमान होता है, मनुष्य अपनी कड़ी मेहनत और सच्ची लगन से किए गये अपने कार्यो को इतना अधिक ऊंचा कर लेता है कि समाज में उसे और उसके काम को मान-सम्मान और ख्याति तो मिलती ही है, साथ ही वो दूसरे लोगों के लिए भी आदर्श बन जाते हैं।

कहते हैं प्रतिभा किसी परिचय की मोहताज नहीं होती है। प्रतिभा के लिए गांव या शहर नहीं बल्कि खुद की मेहनत और लगन रंग लाती है। यदि ऐसा करने के लिए कोई ठान ले तो उसका आशानुरूप परिणाम मिलता ही है।

पूरे भारत में अपने लेखन का लोहा मनवा चुकी, ऐसी ही शख्यितों में एक नाम सामने उभरकर आता है,देवभूमि उत्तराखंड देहरादून की बेटी प्रियनंदिनी बाली का ,जिन्होंने लोगों को यह विश्वास दिलाया है,कि सच्ची लगन और कठोर परिश्रम ही सफलता की कूंजी है। महज़ 17 साल की उम्र में इनके गहन नज़रिये और अनोखी सोच ने कई खूबसूरत कविताओं को जन्म दिया, जिसका संग्रह यह तीन किताबों के रूप में प्रकाशित हो चुकी हैं ।

प्रियनंदनी ने हमारे संवाददाता को बताया कि उत्तराखंड देहरादून के डिफेंस कॉलोनी की मूलतः निवासी प्रियनंदिनी बाली सेना के इन्फेंट्री ऑफिसर की बेटी हैं । किताबें पढ़ने और गॉल्फ खेलने की बेहद शौकीन प्रियनंदिनी बाली ने दून के शेरवुड पब्लिक स्कूल से अपने स्कूली जीवन की शुरुआत की।

भारत के अलग-अलग शहरों में रह चुकी प्रियनंदनी को कविताएं लिखने की प्रेरणा अपने ही ख्यालों से मिलती है और मोतियों की माला की तरह बड़ी खूबसूरती से कविताओ को बुन देती हैं । Puffin Publishers के तहत ‘ द फेज़ ‘ के नाम से पहली किताब मात्र 12 साल की उम्र में प्रकाशित की।

इसके बाद ‘ मडल्ड ‘ और ‘ स्माइल्स ब्लूम लाइक सनफ्लावर्स ‘ भी प्रकाशित हुई। इनकी ये किताबें अमेज़न, किंडल और अन्य प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं l

इस उम्र में जो गलत और टेढ़े-मेढ़े ख्याल दिमाग में आते हैं ,जो मानसिक स्वास्थ्य पर गलत असर डालते हैं प्रियनंदनी ने इन्हें इग्नोर करके अपनी ताकत बना डाली। प्रियनंदनी की कविताएं पाठकों के हृदय को चीरती हुई उनके चेहरों पर एक सुकून भरी मुस्कान ले आती है। उसका मानना है की कविताएं लिखना मानसिक स्वास्थ्य के लिए बड़ी सहायक होती हैं।

17 साल की प्रियनंदनी फ़िलहाल दिल्ली धौला कुआं के आर्मी पब्लिक स्कूल में 12वीं की छात्रा है , उसे मनोविज्ञान में ख़ासी रुचि है। वह आगे चलकर इसी क्षेत्र में काम करना चाहती हैं और हमें भी प्रदर्शनी से सीख लेनी चाहिए कि उसने इतनी छोटी सी उम्र में अपनी कविताओं को किताबो के धरातल पर उतारा ।

प्रियनंदनी बताती है कि मुझे अपने माता-पिता से पूरा सपोर्ट मिलता है और वह मेरी हिम्मत बढ़ाते हैं और मैं आगे बढ़ती चली जाती हूं ।

मिलनसार हंसमुख स्वभाव की प्रियनंदनी बताती हैं की मेरी मेहनत और अपने परिवार मे खास तौर से अपनी माँ दीप्ति बाली और पिता कर्नल अमित बाली का पूरा -पूरा सहयोग और योगदान मानती है और मेरा छोटा भाई बड़ा नटखट है और वह भी मेरी पूरी मदद करता है । वह मानती है की किसी भी क्षेत्र में फैमिली के स्पोट के बिना सफल होना संभव नहीं होता और मेरी फैमिली नें मुझे पूरा सपोर्ट करती है।

वह अपने व्यक्तिगत अनुभव से यह कहती हैं कि यदि आप वास्तव में अपने दिल से कुछ करना चाहते हैं और आप उसके लिए काम करने के लिए तैयार हैं, तो आप निश्चित रूप से एक दिन उसे  प्राप्त कर के रहेंगे। इस पर हमें कबीर दास की एक लाइन याद आती है ।

कबीर दास  ने सच ही कहा है कि “मन के हारे हार है और मन के जीते जीत” ।

निम्नलिखित प्लेटफार्मों पर उपलब्ध :

1) Amazon: https://www.amazon.in/dp/8196336489

2) Kindle: https://www.amazon.in/dp/B0CTHG8WR5

3) Play Store: https://play.google.com/store/books/details?id=q-v-EAAAQBAJ

4) Google Books: https://books.google.co.in/books/about?id=q-v-EAAAQBAJ

5) Goodreads: https://www.goodreads.com/book/show/210224058-smiles-bloom-like-sunflowers

6) Kobo: https://www.kobo.com/in/en/ebook/smiles-bloom-like-sunflowers

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